Shodashi - An Overview

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श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१॥

The Sri Yantra, her geometric representation, is a posh image on the universe and the divine feminine Vitality. It includes 9 interlocking triangles that radiate out within the central position, the bindu, which symbolizes the origin of creation as well as Goddess herself.

Shodashi’s mantra enhances devotion and faith, assisting devotees build a further relationship on the divine. This gain instills belief during the divine approach, guiding individuals via issues with grace, resilience, and a way of reason of their spiritual journey.

दक्षाभिर्वशिनी-मुखाभिरभितो वाग्-देवताभिर्युताम् ।

देवीं मन्त्रमयीं नौमि मातृकापीठरूपिणीम् ॥१॥

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥६॥

ഓം ശ്രീം ഹ്രീം ക്ലീം ഐം സൗ: ഓം ഹ്രീം ശ്രീം ക എ ഐ ല ഹ്രീം ഹ സ ക ഹ ല ഹ്രീം സ ക ല ഹ്രീം സൗ: ഐം ക്ലീം ഹ്രീം ശ്രീം 

ஓம் ஸ்ரீம் ஹ்ரீம் க்லீம் ஐம் ஸௌ: ஓம் ஹ்ரீம் ஸ்ரீம் க ஏ ஐ ல ஹ்ரீம் ஹ ஸ க ஹ ல ஹ்ரீம் ஸ க ல ஹ்ரீம் ஸௌ: ஐம் க்லீம் ஹ்ரீம் ஸ்ரீம் 

हार्दं शोकातिरेकं शमयतु ललिताघीश्वरी पाशहस्ता ॥५॥

Therefore, the Shodashi mantra Shodashi is chanted to create a person far more eye-catching and hypnotic in everyday life. This mantra can modify your life in times as this is a very impressive mantra. One particular who's got mastered this mantra becomes like God Indra in his lifetime.

Over the fifth auspicious day of Navaratri, the Lalita Panchami is celebrated since the legends say this was the working day once the Goddess emerged from hearth to get rid of the demon Bhandasura.

यामेवानेकरूपां प्रतिदिनमवनौ संश्रयन्ते विधिज्ञाः

इति द्वादशभी श्लोकैः स्तवनं सर्वसिद्धिकृत् ।

यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।

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